गुर्जर प्रतिहार राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर उनके सांभर के सामंत और सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशज वकपति ने ईस्वी सन् 917 में स्वयं को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया। उनके दूसरे पुत्र लक्ष्मण सिंह, ई.सन् 950 में नड्डुला वर्तमान नाडोल आए और क्षेत्र में परमार राजाओं के शासन की अव्यवस्था का लाभ उठाकर स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। इस तरह हथुंडी के राष्ट्रकूट और नाडोल के चौहान पड़ोसी शासक हो गए।
ईस्वी सन 1024-25 में सोमनाथ पर आक्रमण करने जा रहे मोहम्मद गजनवी का नाडोल के रामपाल और हथुण्डी के शासक दत्त वर्मा ने सामना किया पर पराजित हो गए। गजनवी ने नाडोल , हथुण्डी आदि नगरों और वहाँ के मंदिरों को तोड़कर उजाड़ दिया।
ईस्वी सन् 1175 में हथुण्डी (राता महावीरजी) के शासक सिंहाजी को उनके बाली दुर्ग के चौहान सामंत वरसिंह ने हराकर इस क्षेत्र के 42 गांवों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने अपन नयी राजधानी नए दुर्ग बेड़ा बुजरी 1 को बनाया , जो वर्तमान में वेरडी काकराड़ी गाँव के आगे भग्नावशेष स्थिति में है। उसी समय में वहाँ पर जैन मंदिर का निर्माण हुआ।जिसके मूलनायक भगवान आदीश्वरजी थे। पर कुछ ही समय में अपनी राजधानी को बेड़ा बुजरी 2, वर्तमान जुना बेड़ा, ले आए। यहाँ पर भी जैन मंदिर का निर्माण हुआ। जिसके मूलनायक भगवान दादा पार्श्वनाथजी विराजमान हुए। बेड़ा बुजरी- 1 धीरे, धीरे वीरान हो गई। इस कारण से वहाँ के मन्दिर के मूलनायकजी आदीश्वरजी भगवान को जुना बेड़ा के दादा पार्श्वनाथ मन्दिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दिया गया। जो इस समय मन्दिर के प्रथम तल पर विराजमान है।
ईस्वी सन् 1413 में बेड़ा के शासक चौहान गंगा सिंह के समय बेड़ा मेवाड़ के अधीन हो गया।
इस काल में बेड़ा के जैन समाज में ओसवाल श्रेष्ठिओं का प्रभुत्व रहा। जुना बेड़ा, वर्तमान बेड़ा के मंदिर निर्माण और प्रतिष्ठा के वे प्रमुख सहयोगी रहे।
ईस्वी सन 1545 के आसपास जुना बेड़ा से वर्तमान बेड़ा को स्थलान्तर प्रारंभ हो गया। इसके साथ ही वर्तमान संभवनाथजी जैन मन्दिर , श्रीराम मंदिर एवं रावले का निर्माण भी प्रारंभ हुआ। इन दोनों मंदिरों की प्रतिष्ठा एक ही दिन मगसर वद् 6 विक्रम संवत 1612( ईस्वी सन् 1554) को अकबर प्रतिबोधक आचार्य हिरविजयसुरीश्वरजी ने करवाई । धीरे, धीरे जुना बेड़ा वीरान हो गया और वर्तमान बेड़ा में लोग निवास करने लगे। धीरे- धीरे वर्तमान रावले का काम भी पूरा हुआ। ईस्वी सन 1580 के आसपास मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने बेड़ा की जागीर अपने चतुर्थ पुत्र शेखाजी को दे दी। वर्तमान ठाकुरसाहेब उन्हीं के वंशज है।

यह क्षेत्र गुर्जरप्रतिहार साम्राज्य के विघटन के पश्चात् कभी स्वतंत्र अथवा – अलग समय में हथुन्डी (राष्ट्रकूट), मेवाड़ (राणा),नाडोल (चौहान),चंद्रावती (आबु)(परमार) और जोधपुर (राठौड़) के राजपूत शासकों के अधीन रहा। इस क्षेत्र पर दिल्ली के मुस्लिम शासकों का सीधा शासन कभी कभार ही रहा।